पाकिस्तान की राजनीति में हमेशा से ही तीखे बयान और यू-टर्न आम रहे हैं, लेकिन हाल ही में विदेश मंत्री रह चुके बिलावल भुट्टो ज़रदारी ने जो बदलाव दिखाया है, वह काफी हैरान करने वाला है। कुछ समय पहले तक वे भारत को लेकर बेहद आक्रामक बयानबाज़ी करते थे — यहाँ तक कि एक बार उन्होंने कहा था कि “नदी में खून बहेगा।” अब वही बिलावल शांति की बात कर रहे हैं और भारत के साथ बेहतर रिश्तों की वकालत कर रहे हैं।

क्या बदला है?

बिलावल भुट्टो का नया रुख अचानक नहीं आया। पाकिस्तान इस समय गंभीर आर्थिक संकट, राजनीतिक अस्थिरता और अंतरराष्ट्रीय दबावों से जूझ रहा है। ऐसे हालात में पड़ोसी देशों के साथ तनाव को कम करना और सहयोग बढ़ाना एक रणनीतिक मजबूरी बन गई है।

दूसरी ओर, भारत अब वैश्विक मंच पर एक बड़ी ताकत बनकर उभरा है। दुनिया के बड़े राष्ट्र अब भारत की बात सुनते हैं, और ऐसे में पाकिस्तान के लिए यह समझना जरूरी हो गया है कि भारत से दुश्मनी की राजनीति अब अंतरराष्ट्रीय समर्थन नहीं दिला सकती।

बयानबाज़ी से भरोसे तक का रास्ता आसान नहीं

हालांकि बिलावल भुट्टो की बातों में नरमी ज़रूर आई है, लेकिन भारत में कई लोग उनके बदले रुख को संदेह की निगाह से देख रहे हैं। भारत यह भली-भांति जानता है कि पाकिस्तान की राजनीति में जो कहा जाता है, वह ज़रूरी नहीं कि वही किया जाए। इसलिए दोस्ती की बात सिर्फ शब्दों से नहीं, बल्कि ठोस कदमों से ही साबित हो सकती है।

भविष्य की राह क्या होगी?

अगर पाकिस्तान सच में भारत से संबंध सुधारना चाहता है, तो उसे सिर्फ बयान नहीं, व्यवहार भी बदलना होगा। आतंकवाद के खिलाफ ठोस कार्रवाई, व्यापारिक संबंधों को बढ़ावा और आपसी संवाद की बहाली जैसे कदम ही दो देशों के बीच भरोसे की नींव रख सकते हैं।

बिलावल भुट्टो की इस ‘नरम’ भाषा को एक नई शुरुआत के संकेत के रूप में देखा जा सकता है, लेकिन यह शुरुआत तब तक अधूरी है जब तक उसे ठोस नीतियों और ईमानदार इरादों से मज़बूती न मिले।

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